
13 फरवरी, 2025 से लागू मणिपुर का राष्ट्रपति शासन अब 13 अगस्त 2025 से और छह महीने के लिए बढ़ा दिया गया है।
राज्यसभा ने जैसे ‘Netflix सब्सक्रिप्शन’ बढ़ाया हो—“रिन्यू हो गया, अब अगले एपिसोड में देखेंगे शांति कब आती है।”
क्या कहा गया है आधिकारिक नोटिस में?
राज्यसभा की ओर से जारी नोटिस में संविधान के अनुच्छेद 356 का हवाला देते हुए कहा गया है कि मणिपुर में लागू राष्ट्रपति शासन को जारी रखना ज़रूरी है।
यानि, लोकतंत्र की कुर्सी फिलहाल ‘Out of Service’ है, कृपया आगे बढ़ें।
एन. बीरेन सिंह के इस्तीफ़े से शुरू हुआ था राष्ट्रपति शासन
13 फरवरी को मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के इस्तीफ़े के बाद केंद्र सरकार ने राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया था। तब से राज्य “मुख्यमंत्री विहीन” है, और जनता “उम्मीद सहित, समाधान रहित” स्थिति में है।
जातीय संघर्ष जारी, समाधान गायब
मई 2023 से ही मणिपुर में मेइती और कुकी समुदायों के बीच टकराव जारी है। कभी इंटरनेट बंद, कभी स्कूल बंद, कभी नेता गुम… और अब तो लगता है कि शांति को भी वीज़ा नहीं मिल रहा मणिपुर आने का।
राजनीति में ‘रूल’ बहुत है, पर ‘रिलीफ़’ नहीं
राष्ट्रपति शासन बढ़ाने से पहले कई सवाल थे:
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क्या कोई राजनीतिक समाधान निकलेगा?
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क्या अंतर-समुदायिक बातचीत होगी?
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क्या केंद्र सरकार कोई नई रणनीति लाएगी?
उत्तर: “Under Consideration”
(यानि, सिर्फ विचारधारा चल रही है, क्रियान्वयन छुट्टी पर है)
जनता क्या कह रही है?
मणिपुर की जनता अब शासन को लेकर उतनी ही उत्साहित है जितनी कोई ट्रेन लेट होने पर ‘स्टेशन अनाउंसमेंट’ से होती है।
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“राष्ट्रपति शासन अब राज्य का स्थायी मेहमान हो गया है।”
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“संविधान की धारा 356 मणिपुर में ‘Weekly Trending’ है।”
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“यहाँ नेताओं की ज़रूरत नहीं, नोटिफिकेशन ही सब कुछ संभाल लेता है।”
शासन बढ़ा है, भरोसा नहीं
राष्ट्रपति शासन को बढ़ा देना कोई समाधान नहीं है, बल्कि ये दिखाता है कि राज्य की राजनीतिक व्यवस्था ICU में है। जब तक जमीनी स्तर पर बातचीत, न्याय और पुनर्निर्माण की प्रक्रिया शुरू नहीं होती, मणिपुर की कहानी सिर्फ एक्सटेंशन नोटिस बनकर रह जाएगी।